Inspirational Story in hindi language

Inspirational Story in hindi language | Motivational stories in hindi for employees



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सच्ची घटना पर आधारित यह बात कुछ दिनों पुरानी है, जब स्कूल बस की हड़ताल चल रही थी ।

 मेरे मिस्टर अपने व्यवसाय की एक आवश्यक मीटिंग में बिजी थे इसलिए मेरे 5 साल के बेटे को स्कूल से लाने के लिए मुझे  टू-व्हीलर पर जाना पड़ा ।

जब मैं टू व्हीलर से घर की ओर वापस आ रही थी, तब अचानक रास्ते में मेरा बैलेंस बिगड़ा और मैं एवं मेरा बेटा हम दोनों गाड़ी सहित नीचे गिर गए ।

 मेरे शरीर पर कई खरोंच आए लेकिन  प्रभु की कृपा से मेरे बेटे को कहीं खरोंच तक नहीं आई ।

हमें नीचे गिरा देखकर आसपास के कुछ लोग इकट्ठे हो गए और उन्होंने हमारी मदद करना चाही ।

तभी मेरी कामवाली बाई राधा ने मुझे दूर से ही देख लिया और वह दौड़ी चली आई ।

उसने मुझे सहारा देकर  खड़ा किया, और अपने एक परिचित से मेरी गाड़ी एक दुकान पर खड़ी करवा दी । वह मुझे कंधे का सहारा देकर अपने घर ले गई जो पास में ही था । जैसे ही हम घर पहुंचे वैसे ही राधा के दोनों बच्चे हमारे पास आ गए ।

राधा ने अपने पल्लू से  बंधा हुआ 50 का नोट निकाला और अपने बेटे राजू को दूध, बैंडेज एवं एंटीसेप्टिक क्रीम लेने के लिए भेजा तथा अपनी बेटी रानी को पानी गर्म करने का बोला । उसने मुझे कुर्सी पर बिठाया तथा मटके का ठंडा जल पिलाया । इतने में पानी गर्म हो गया था ।

वह मुझे लेकर बाथरूम में गई और वहां पर उसने मेरे सारे जख्मों को गर्म पानी से अच्छी तरह से धोकर साफ किए और बाद में वह उठकर बाहर गई ।  वहां से वह एक नया टावेल और एक नया गाउन मेरे लिए लेकर आई ।

उसने टावेल से मेरा पूरा बदन पोंछ तथा जहां आवश्यक था वहां बैंडेज लगाई । साथ ही जहां मामूली चोट पर एंटीसेप्टिक क्रीम लगाया ।

अब मुझे कुछ राहत महसूस हो रही थी ।

उसने मुझे पहनने के लिए नया गाउन दिया वह बोली "यह गाउन मैंने कुछ दिन पहले ही खरीदा था लेकिन आज तक नहीं पहना मैडम आप यही पहन लीजिए तथा थोड़ी देर आप रेस्ट कर लीजिए । "

"आपके कपड़े बहुत गंदे हो रहे हैं हम इन्हें धो कर सुखा देंगे फिर आप अपने कपड़े बदल लेना ।"

 मेरे पास कोई चॉइस नहीं थी । मैं गाउन पहनकर बाथरुम से बाहर आई। उसने झटपट अलमारी में से एक नया चद्दर निकाल और पलंग पर बिछाकर बोली आप थोड़ी देर यहीं आराम कीजिए । इतने मैं बिटिया ने दूध भी गर्म कर दिया था । राधा ने दूध में दो चम्मच हल्दी मिलाई और मुझे पीने को दिया और बड़े विश्वास से कहा मैडम आप यह दूध पी लीजिए आपके सारे जख्म भर जाएंगे ।

लेकिन अब मेरा ध्यान तन पर था ही नहीं बल्कि मेरे अपने मन पर था । मेरे मन के सारे जख्म एक एक कर के हरे हो रहे थे । मैं सोच रही थी "कहां मैं और कहां यह राधा ?"

जिस राधा को मैं  फटे पुराने कपड़े देती थी, उसने आज मुझे नया टावेल दिया, नया गाउन दिया और मेरे लिए नई बेडशीट लगाई । धन्य है यह राधा ।

एक तरफ मेरे दिमाग में यह सब चल रहा था तब दूसरी तरफ  राधा गरम गरम चपाती और आलू की सब्जी बना रही थी । थोड़ी देर मे वह थाली लगाकर ले आई । वह बोली "आप और बेटा दोनों खाना खा लीजिए ।"

राधा को मालूम था कि मेरा बेटा आलू की सब्जी ही पसंद करता है और उसे गरम गरम रोटी चाहिए । इसलिए उसने रानी से तैयार करवा दी थी । रानी बड़े प्यार से मेरे बेटे को आलू की सब्जी और रोटी खिला रही थी और मैं इधर प्रायश्चित की आग में जल रही थी । सोच रही थी कि जब भी इसका बेटा राजू मेरे घर आता था मैं उसे एक तरफ बिठा देती थी, उसको नफरत से देखती थी और इन लोगों के मन में हमारे प्रति कितना प्रेम है ।

यह सब सोच सोच कर मैं आत्मग्लानि से भरी जा रही थी । मेरा मन दुख और पश्चाताप से भर गया था । तभी मेरी नज़र राजू के पैरों पर गई जो लंगड़ा कर चल रहा था । मैंने राधा से पूछा "राधा इसके पैर को क्या हो गया तुमने इलाज नहीं करवाया ?"

राधा ने बड़े दुख भरे शब्दों में कहा मैडम इसके पैर का ऑपरेशन करवाना है जिसका खर्च करीबन ₹ 10000 रुपए है । मैंने और राजू के पापा ने रात दिन मेहनत कर के ₹5000 तो जोड़ लिए हैं ₹5000 की और आवश्यकता है । हमने बहुत कोशिश की लेकिन कहीं से मिल नहीं सके । ठीक है, भगवान का भरोसा है, जब आएंगे तब इलाज हो जाएगा । फिर हम लोग कर ही क्या सकते हैं ?

तभी मुझे ख्याल आया कि राधा ने एक बार मुझसे ₹5000 अग्रिम मांगे थे और मैंने बहाना बनाकर मना कर दिया था ।

आज वही राधा अपने पल्लू में बंधे सारे रुपए हम पर खर्च कर के खुश थी और हम उसको, पैसे होते हुए भी मुकर गए थे और सोच रहे थे कि बला टली ।

आज मुझे पता चला कि उस वक्त इन लोगों को पैसों की कितनी सख्त आवश्यकता थी ।

मैं अपनी ही नजरों में गिरती ही चली जा रही थी । अब मुझे अपने शारीरिक जख्मों की चिंता बिल्कुल नहीं थी बल्कि उन जख्मों की चिंता थी जो मेरी आत्मा को मैंने ही लगाए थे । मैंने दृढ़ निश्चय किया कि जो हुआ सो हुआ लेकिन आगे जो होगा वह सर्वश्रेष्ठ ही होगा ।

मैंने उसी वक्त राधा के घर में जिन जिन चीजों का अभाव था उसकी एक लिस्ट अपने दिमाग में तैयार की। थोड़ी देर में मैं लगभग ठीक हो गई।

मैंने अपने कपड़े चेंज किए  लेकिन वह गाउन मैंने अपने पास ही रखा और राधा को बोला "यह गाऊन अब तुम्हें कभी भी नहीं दूंगी यह गाऊन मेरी जिंदगी का सबसे अमूल्य तोहफा है"

राधा बोली मैडम यह तो बहुत हल्की रेंज का है । राधा की बात का मेरे पास कोई जवाब नहीं था । मैं घर आ गई लेकिन रात भर सो नहीं पाई ।

मैंने अपनी सहेली के मिस्टर, जो की हड्डी रोग विशेषज्ञ थे, उनसे राजू के लिए अगले दिन का अपॉइंटमेंट लिया । दूसरे दिन मेरी किटी पार्टी भी थी । लेकिन मैंने वह पार्टी कैंसिल कर दी और राधा की जरूरत का सारा सामान खरीदा  और वह सामान लेकर में राधा के घर पहुंच गई ।

राधा समझ ही नहीं पा रही थी कि इतना सारा सामान एक साथ में उसके घर मै क्यों लेकर गई ।

 मैंने धीरे से उसको पास में बिठाया और बोला मुझे मैडम मत कहो मुझे अपनी बहन ही समझो यह सारा सामान मैं तुम्हारे लिए नहीं लाई हूं मेरे इन दोनों प्यारे बच्चों के लिए लाई हूं और हां मैंने राजू के लिए एक अच्छे डॉक्टर से अपॉइंटमेंट ले लिया है अपन को शाम 7:00 बजे उसको दिखाने चलना है उसका ऑपरेशन जल्द से जल्द करवा लेंगे और तब राजू भी अच्छी तरह से दोड़ने लग जाएगा। राधा यह बात सुनकर खुशी के मारे रो पड़ी लेकिन यह भी कहती रही कि "मैडम यह सब आप क्यों कर रहे हो ?" हम बहुत छोटे लोग हैं हमारे यहां तो यह सब चलता ही रहता है । वह मेरे पैरों में गिरने लगी । यह सब सुनकर और देखकर मेरा मन भी द्रवित हो उठा और मेरी आंखों से भी आंसू के झरने फूट पड़े । मैंने उसको दोनों हाथों से ऊपर उठाया और गले लगा लिया मैंने बोला बहन रोने की जरूरत नहीं है अब इस घर की सारी जवाबदारी मेरी है । मैंने मन ही मन कहा राधा तुम क्या जानती हो कि मैं कितनी छोटी हूं और तुम कितने बड़ी हो आज तुम लोगों के कारण मेरी आंखे खुल सकीं। मेरे पास इतना सब कुछ होते हुए भी मैं भगवान से और अधिक की भीख मांगती रही मैंने कभी संतोष का अनुभव नहीं किया।
लेकिन आज मैंने जाना के असली खुशी पाने में नहीं देने में है ।

मैं परमपिता परमेश्वर को बार-बार धन्यवाद दे रही थी, कि आज उन्होंने मेरी आंखें खोल दी। मेरे पास जो कुछ था वह बहुत अधिक था उसके लिए मैंने परमात्मा को बार-बार अपने ऊपर उपकार माना तथा उस धन को जरूरतमंद लोगों के बीच खर्च करने का पक्का निर्णय किया ।

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